जीएसटी कर कानूनों के पालन करने में आम करदाता को आने वाली परेशानियों को हल करने हेतु ज्ञापन

जीएसटी कर कानूनों के पालन करने में आम करदाता को आने वाली परेशानियों को हल करने हेतु ज्ञापन

CA Sudhir Halakhandi | Jul 16, 2021 |

जीएसटी कर कानूनों के पालन करने में आम करदाता को आने वाली परेशानियों को हल करने हेतु ज्ञापन

जीएसटी कर कानूनों के पालन करने में आम करदाता को आने वाली परेशानियों को हल करने हेतु ज्ञापन

माननीय वित्त मंत्री महोदया

भारत सरकार

नई दिल्ली

माननीय महोदय,

सादर नमस्कार

विषय :- जीएसटी कर कानूनों के पालन करने में आम करदाता को आने वाली परेशानियों को हल करने हेतु ज्ञापन .

आपके कुशल नेतृत्व में जीएसटी भारत में अब चार वर्ष पूरे कर चुका है और अब यह तय है कि जीएसटी भारत वर्ष में लगातार जारी रहने वाला है और इसे अब किसी  भी वैकल्पिक व्यवस्था से बदला नहीं जा सकता है इसलिए भारत के करदाताओं को अब इस कर के साथ ही अपना व्यापार करना होगा.

महोदया , कुछ छोटे देशों के उदहारण दिए जाते हैं कि एक बार जीएसटी लगाने के बाद उसे हटा लिए गया लेकिन भारत जैसे विशाल देश में सरकार और करदाता की सम्मिलित प्रयासों के साथ जिस कर को लागू किया गया था उसका जारी रहना और सफलता पूर्वक जारी रहना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ना सिर्फ जरुरी है बल्कि इसके विकास के लिए उत्तरोत्तर विकास का मार्ग भी प्रशस्त करेगा. भारत सरकार और विशेष तौर से वित्तमंत्री के रूप में आपके प्रयास ना सिर्फ सराहनीय है बल्कि प्रशंसा के योग्य भी है . इन प्रयासों से लिए आपका हार्दिक अभिवादन और अभिनन्दन .

जीएसटी एक बड़ा और महत्वकांक्षी कर परिवर्तन था और प्रारम्भिक अवस्था में समस्याएं आना स्वाभाविक भी था . जीएसटी नेटवर्क प्रारम्भ से एक  समस्या बना हुआ था लेकिन इस समय इस नेटवर्क से समस्याएं और शिकायतें बहुत ही कम हो गई हैं और इसके आपका मंत्रालय और संबंधित पक्ष जिसमें सेवा प्रदाता भी शामिल है हार्दिक बधाई के पात्र है .

माननीय महोदया , यदि जीएसटी से जुडी कुछ अन्य समस्याए गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए हल कर दी जाए तो ना सिर्फ करदाताओं को इस कर के पालन करने में आसानी रहेगी बल्कि अर्थ व्यवस्था के विकास में भी यह कर अपनी महत्ती भूमिका अदा कर सकेगा.

इस पत्र के साथ हम आपको जीएसटी से जुडी हुई निम्नलिखित समस्याएं बता रहें हैं जिनका हल यदि हो जाए तो व्यापारी वर्ग , प्रोफेशनल्स और देश का करदाता आपका आभारी रहेगा :-

1. चार साल की तकनीकी गलतियां को माफ़ किया जाए :-

जीएसटी एक नया कर है और पिछले चार सालों से इस कर में कई तरह की  समस्याएं रही है जिस कारण से करदाता इस कानून का पालन ठीक प्रकार से नहीं कर पाए. इस कानून के तहत बार -बार बदले जाने वाले फॉर्म , नियमित रूप से जारी अधिसूचनाएं , परिपत्र और स्पष्टीकरण , जीएसटी नेटवर्क की कमियां और कानूनी समझ के प्रारम्भिक आभाव के कारण करदाता प्रारम्भ से ही भ्रमित  रहा है और उनसे इस कानून की पालना को लेकर कई गलतियां हुई है जो कि  कर की चोरी नहीं है और जिन मामलों में प्रक्रियात्मक गलतियां हुई है जिनके कारण अभी बताये गए हैं उनके सुधार के लिए एक मौक़ा दिया जाए जिससे इन गलतियों के सम्बन्ध में उन्हें कानून की दुरूह प्रक्रिया का पालन नहीं करना पड़े जिसमें नोटिस , अपील और इसकी आगे की कानूनी प्रक्रिया भी शामिल है . यह एक नए फॉर्म को जारी कर किया जा सकता है जिसमें करदाता अपनी समस्त ऐसी भूलो को बता कर उसके कर प्रभाव को दर्शा सकता है जिससे कर निर्धारण आसान हो सके.यह प्रक्रियात्मक भूलें बड़ी संख्या में हुई है जैसे इनपुट क्रेडिट गलत हेड में दिखा देना , इनपुट क्रेडिट का गलत तरीके से समायोजन ले लेना,  डेबिट या क्रेडिट नोट का गलत समायोजन या इन्हें गलत हेड में दिखा देना जैसे बिक्री में जोड़ देना , करमुक्त बिक्री को रिटर्न में नहीं दिखाना . इन भूलों में कोई भी कर की चोरी नहीं है लेकिन यदि इस तरह से सामूहिक स्पष्टीकरण का मौक़ा नहीं दिया गया तो फिर लाखों की संख्या में नोटिस जारी होंगें  जिससे डीलर्स तो परेशान होंगे ही पर विभाग के पास भी इतने साधन और कर्मचारी नहीं है और इसके साथ ही यह कर बहुत अधिक संख्या में मामले विवादों में फंस जाएगा.

2. इनपुट के मिस्मेच की व्यवस्था को बदला जाए :-

इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच के सम्बन्ध में जीएसटी में भी यही तरीका अपनाया जा रहा है कि खरीदादार की इनपुट क्रेडिट रोक कर उससे कर जमा करवा दिया जाए और यही वेट कानून की भी सबसे बड़ी कमी थी. क्रेता तो पहले ही विक्रेता को अपना टैक्स दे चुका है उसकी इनपुट क्रेडिट को रोक कर उससे फिर से टैक्स जमा कराना एक प्रकार से अन्याय है . जो कर विक्रेता ने क्रेता से लेकर किसी भी कारण से जमा नहीं कराया है तो यह कर सरकार को विक्रेता से ही वसूल करना चाहिए . क्रेता की इनपुट क्रेडिट रोकना तो सबसे अंतिम उपाय होना चाहिए जिसे एक पहला उपाय बना दिया गया है . इस व्यवस्था में सुधार की जरुरत है जिससे ईमानदार करदाताओं को राहत मिले और न्याय मिले .

3. इनपुट क्रेडिट की मिस्मेच समायोजना को समाप्त करने के लिए समय दिया जाए :-

विक्रेता द्वारा भरे गए जीएसटी बिक्री के रिटर्न पर ही क्रेता की इनपुट क्रेडिट को निर्भर कर दिया गया है और यदि किसी भी कारण से विक्रेता का रिटर्न देरी से प्रस्तुत होता है तो क्रेता की इनपुट क्रेडिट रोक ली जाती है . यह कोई बहुत न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं है तब फिर क्या होना चाहिए ? क्रेता को अपने क्रय की सूचि प्रस्तुत करने को कहा ही नहीं जाता तो फिर सरकार को कैसे पता चल सकता है कि विक्रेता ने अपने रिटर्न में कौनसी बिक्री नहीं दिखाई है . क्रेता को यदि अपनी खरीद की डिटेल्स देने के लिए एक रिटर्न फॉर्म जारी किया जाए विक्रेता अपनी बिक्री एक रिटर्न में दिखाता ही है तो अब सभी डीलर्स के इन दोनों रिटर्न्स को एक केन्द्रीय कंप्यूटर में प्रोसेस किया जाय और क्रेता और विक्रेता दोनों के खातों में मिस्मेच को डाल दिया जाए तो तीनों पक्षों को अर्थात सरकार , क्रेता और विक्रेता मिस्मेच का पता चल जाएगा , क्रेता और विक्रेता दोनों को 90 दिन का समय दिया जाए ताकि वे इस मिस्मेच का आपसी समायोजना कर सके और जहां जरुरत हो वहां इसे ब्याज सहित जमा करा सके . ऐसा नहीं हो तो 90 दिन बाद सरकार अपनी और से जो भी दोषी हो उसके खिलाफ कार्यवाही करे,

महोदया , इस समय मिस्मेच निकालने का काम क्रेता अपने  स्तर पर कर रहें है और जो काम केवल एक केन्द्रीय कम्पुटर पर हो सकता है उसे कम से कम 1 करोड़ कम्पुटरस पर किया जा रहा है फिर भी कोई नतीजा नहीं निकल रहा है तो फिर इस व्यवस्था में वांछित सुधार् किया जाना चाहिए.

4. जीएसटी में जारी नोटिस की संख्या कम की जाए :-

जीएसटी में जारी नोटिस की संख्या कम की जाए और इस समय हो यह रहा है यदि अधिकारी एक नोटिस सिस्टम से जेनरेट होने के बाद यदि उपलब्ध तथ्यों को देखें तो कई मामलों में ऐसे नोटिस जारी करने की आवश्यकता ही नहीं रहती है लेकिन सिस्टम से जारी नोटिस डीलर्स को भेजे जा रहे हैं जिससे ना सिर्फ उन्हें परेशानी हो रही है बल्कि जीएसटी का मुख्य उद्देश्य मानव प्रभाव से इसे मुक्त रखना भी प्रभावित हो रहा है.

5. एमनेस्टी स्कीम के साथ धारा 16(4) में राहत दी जाए :-

सरकार जीएसटी डीलर्स के लिए एमनेस्टी स्कीम लाती है लेकिन जिन डीलर्स के रजिस्ट्रेशन बहुत पहले ही निरस्त हो चुके है उनके यदि रजिस्ट्रेशन फिर से शुरू नहीं किये जाते हैं तो उनके लिए यह एमनेस्टी स्कीम किसी भी काम की नहीं है इसके अतिरिक्त उनकी इनपुट क्रेडिट पर जो जीएसटी कानून की धारा 16(4) के तहत प्रतिबन्ध लगाया गया है उसे भी हटाया जाना चाहिए. देरी से कर चुकाने और देरी से रिटर्न भरने वाले डीलर को यों भी ब्याज का भुगतान करना होता है फिर सरकार उसकी इनपुट क्रेडिट को रोक लगा कर उस पर दोहरा कर क्यों लगना चाहती है.

6. जीएसटी कर जमा कराते ही ब्याज लगना बंद हो :-

जीएसटी में एक कानून है कि प्रावधान है कि यदि डीलर अपना कर जमा करा भी दे तो भी उसका ब्याज तब तक बंद नहीं होता है जब तक कि वह अपना मासिक रिटर्न GSTR-3B ना भर दे और यह एक बहुत ही अजीब कानून है . कभी कभी करदाता अपना कर तो जमा करा देता है पर रिटर्न नहीं भर पाता है तो ऐसे में जो कर उसने जमा करा दिया है  तो उसका ब्याज तो बंद हो जाना चाहिए . रिटर्न देरी से भरने पर लेट फीस तो वैसे ही लगती है लेकिन जो टैक्स डीलर ने जमा करा दिया है उस पर तो ब्याज बंद होना चाहिए.

7. जीएसटी में देरी से कर जमा कराने पर ब्याज की दर कम की जाए :-

जीएसटी कानून के तहत ब्याज की दर 18 प्रतिशत है लेकिन यह दर उस समय की तय की गई जब कि बैंक में सावधि जमा पर ब्याज की दर 10 से 12 प्रतिशत थी लेकिन इस समय ब्याज की दर 5 प्रतिशत है तो फिर यह 18% की दर न्यायपूर्ण नहीं है. कर को समय पर जमा नहीं करवाने के पीछे कई कारण होते है इसलिए इस ब्याज की दर कम की जानी चाहिए.

8. ई -इन्वोइस में देरी से लागू किये जाने पर माफ़ किया जाए :-

जीएसटी में ई -इन्वोइस के प्रावधान बहुत बाद में लागू किये गए थे लेकिन कुछ डीलर्स इसे समय पर शुरू नहीं कर पाए तो ऐसे में जो डीलर्स प्रारम्भ में समय से इन प्रावधानों को लागू नहीं कर पाए उन्हें इस भूल , जिसमें कहीं भी कर चोरी तो नहीं है , को माफ़ किया जाना चाहिए.

9. जीएसटी नेटवर्क पर डीलर का व्यापारिक नाम का प्रयोग किया जाए :-

जीएसटी में बहुत सी जगह डीलर्स के व्यापरिक  नाम की जगह प्रोप. का नाम दिया जाता है लेकिन ऐसा कोई नाम डीलर द्वारा अपने बिल पर नहीं देते है तो ऐसे में क्रेता को हमेशा एक असमंजस और भ्रम रहता है तो ऐसे में जीएसटी के नेटवर्क पर सबसे पहले व्यापरी की फर्म का नाम दिया जाना चाहिए क्यों कि प्रोप्राइटर के नाम का उपयोग व्यापार जगत में नहीं होता है .

10. ई – वे बिल की तकनीकी गलतियों से राहत दी जाए :-

ई- वे बिल में छोटी से छोटी गलती पर उन्हें मार्ग में रोककर पेनाल्टी लगाईं जाती है जिनमें अधिकत्तर तो केवल तकनीकी भूलें होती है और इनसे कोई राहत इन करदाताओं को दी जानी चाहिए.

11. लेट फीस लौटाई जाए :-

सरकार समय समय पर लेट फीस माफ करती है तो ऐसे में जो डीलर्स उस समय के रिटर्न्स लेट फीस भर कर रिटर्न भर चुके है उनकी लेट फीस लौटा दी जानी चाहिए.

12. जीएसटीआर- 3 में संशोधन की सुविधा दी जाए :-

जीएसटी का एक मुख्य रिटर्न है जीएसटीआर- 3 बी लेकिन इस रिटर्न में हुई गलती को ठीक करने की कोई सुविधा नहीं है और इस सुविधा के अभाव में जीएसटी के समायोजन की कई समस्याएं खड़ी हो रही है . जीएसटी कानून में इस रिटर्न के संशोधन पर कोई रोक नहीं है लेकिन यह सुविधा क्यों नहीं है यह एक आश्चर्य की बात है. इस रिटर्न में सशोधन की सुविधा तुरंत प्रारम्भ की जानी चाहिए.

13. सेवाओं के लिए भी थ्रेशहोल्ड लिमिट को 40 लाख रूपये की जाए :-

जीएसटी एक देश एक कर के सन्देश के साथ लागु किया गया था लेकिन जो प्रारम्भ में थ्रेशहोल्ड लिमिट माल एवं सेवा दोनों के लिए 20 लाख रूपये थी लेकिन यह सीमा माल के लिए 40 लाख रूपये कर दी गई लेकिन सेवाओं के लिए यह सीमा 20 लाख रूपये ही रह गई. इस सीमा को भी अब बढ़ा कर 40 लाख रूपये कर दी जानी चाहिए.

आशा है कि आप इन समस्याओं पर ध्यान देकर इनको हल करने के शीघ्र आदेश देकर देश के करदाताओं को राहत प्रदान करने का कष्ट करेंगे.

आदर सहित

सुधीर हालाखंडी

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